खरवार -कभी थे सरकार, अब मांग रहे अधिकार

रोहतास पर राज करने वाले खरवार-चेरो राजाओं का इतिहास, उनकी सभ्यता व संस्कृति काफी समृद्ध रही है। नायक प्रताप धवल, बिक्रम धवल से लेकर उदयचंद ने यहां राज किया। आज उन्हीं के वंशज दाने-दाने को मोहताज होकर अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। अशिक्षा, लाचारी, भूख व बेबसी से त्रस्त अधिकांश आदिवासी एकजुट होने की रणनीति बना रहे हैं।
शाहाबाद गजेटियर में रोहतास क्षेत्र के आदिम जनजातियों में प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक एवं बौद्धिक क्रांति की बात मिलती है। आदिम जनजातियों में खरवार, शबर, भर व चेरो प्रमुख थे। खरवारों का आधिपत्य सासाराम, रोहतासगढ़, भुरकुड़ा [शेरगढ़], गुप्ताधाम सहित सम्पूर्ण पहाड़ी पर था। चेरो राजाओं के आधिपत्य वाले क्षेत्र में देव मार्कण्डेय, चकई, तुलसीपुर, रामगढ़वा, जोगीबार, भैरिया और घोषिया, जारन-तारन रहा।12-13वीं सदी में गहड़वाल शासन के अंतर्गत ख्यारवाला वंश [खरवार] का शासन आया। 19 अप्रैल 1158 ई. को तुतला भवानी [तुतराही] में इसी वंश के महानायक प्रताप धवल देव जपिलिया ने पहला शिलालेख तुतला भवानी मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर लगाया। इसमें अपने राज परिवार के साथजपला से रोहतास तक नायक होने की बात कही गई है।क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक बनावट पर शोध कर चुके डा. श्याम सुंदर तिवारी की माने तो फ्रांसिसी बुकानन ने अपनी यात्रा वृतांत के दौरान बांदू शिलालेख को पढ़ा था। जिसमें प्रतापधवल देव के अतिरिक्त रोहतास गढ़ पर शासन करने वाले 11 खरवार के नाम का उल्लेख है।
रोहतास और उसके आसपास की पहाड़ियों में छोटे-छोटे भागों पर इनके वंशजों का राज था। कैमूर पहाड़ी पर भी इनका आधिपत्य था और इनकी राजधानी भी रोहतास गढ़ में रही है। वन संपदाओं पर इनका अधिकार सदियों से चला आ रहा था।स्वतंत्रता के पूर्व से इनके अधिकारों में कटौती होती गई। स्थिति यहां तक आ गई कि ये रोजी-रोटी के लिए भी मोहताज हो गए। वनों से इनका अधिकार समाप्त हो गया। ईमानदारी, कर्मठता व परिश्रम के लिए जाने-जाने वाले आदिवासी अब शक की निगाहों से देखे जाने लगे हैं। गरीबी और लाचारी के कारण उग्रवाद भी इनके बीच पनपा है।
कैमूरांचल विकास मोर्चा के अध्यक्ष सुग्रीव सिंह खरवार कहते हैं कि रोहतास गढ़ पर ख्यारवारों का शासन था, लेकिन आठ सौ वर्षो में हम राजा से रंक की श्रेणी में आ गए। हमें अपने अधिकार के लिए धरना-प्रदर्शन व सभा करनी पड़ रही है।
योजनाओं से रोजगार की सब्जबाग दिखाई जाती है। सच यह है कि पानी तक के लिए आदिवासी मोहताज हैं।उन्होने बताया कि जिले में 10 वर्ष पूर्व आदिवासियों की जनसंख्या 47076 थी जो अब 60 हजार से अधिक हो गई है। हमारे पूर्वज करुष या कारुष थे, जो बाद में करुवार कहलाए। यह अपभ्रंश होकर ख्यारवार व खरवार हो गया। पुराणों में इन्हें 'विंध्य पृष्ठ निवासिन' कहा जाता है। यह जाति सदियों पुरानी है और उसमें राजा के गुण होते हैं।
डीएम अनुपम कुमार आदिवासियों के अपेक्षित उत्थान न हो पाने पर दुख प्रकट करते हैं। कहते हैं कि उन्हें वनाधिकार अधिनियम के तहत वन संपदा व उत्पाद पर अधिकार दिलाने की कवायद जारी है। कई योजनाओं को मूर्त रूप दिया जा रहा है।हमारे जाती के लोग बहुत ही साहसी और निडर हुआ करते थे, हाँ अक्षर ज्ञान न होने के कारन, हमारे पूर्वजो के साथ ज्याजति किये पढ़े-लिखे सामंतवादी लोग, सनातन धर्म के लोगो का हमारे पूर्वजो के ऊपर कोई जोर नहीं चलता था, वो निर्भीक, निडर हुआ करते थे, और समन्तियो धर्म वाले हमसे, जलते थे और साथ में डरते भी थे कि कही हम उनपे भरी ना पद जाये इस लिए वे मुगलो के साथ मिल कर हमारा पूर्वजो का नरसंघार करने लगे, हमारे जाती के लोग तितत्-बितर हो गए |
सभी अपने काबिले को छोड़ कर दूसरे-दूसरे जगह पे पलायन हो गए, तब से अब तक हम अपना वजूद आज तक ढूंढ रहे है हम जंगली काबिले के लोग है, जो मुगलो के आने बाद से बिखर गए, उसके बाद हमारे समाज के बचे कूचे लोगो को अमंतवादियो ने हमारा हक, अधिकार, हमारे सब कुछ छीन लिए, फिर हमारे पूर्वजो को दर-दर भटकना पड़ा, हम राजा हरिश्चंद्र के बेटे रोहित के वंसज है,गंगा नदी के इस पार जो लोग भाग कर आ गए, जो लोग अपने साथियो का साथ ना दे सके, अपने परिवार के बचे खुचे लोगो के प्यार और अपनापन उन्हें सताने लगी, वे लोग क्या करते, ना उनके पास कोई धन-दौलत, ना कोई रोजगार, मजबूरन अपने और अपने परिवार के लोगो का पेट पलने के लिए, रसोइया बन गए, (हमारे पूर्वजो के अंदर एक कला थी बहुत स्वादिस्ट खाना बनाने की) मर्द रसोइया हो गए सामंतियो के यहाँ और औरते उनके घरो का जूठन साफ करने लगी, और बाद में अपनी जिंदगी बचाने के लिए वे अपनी जात छिपाये, वही से सुरु हुआ, काम करने वाला-काम करने वाला-काम करने वाला, बोलते बोलते कमकर हो गए...

Comments

  1. इतने सारे जानकारी या के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद हमे आसा है कि आगे भी ऐसी जानकारी या मिलता रहेगा... आपका राम दुलार सिंह खरवार

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    1. Bahut achhi jankari mili jankar achha laga ki hum bhi ek nidar sahasi cast ke hai Jo log abhi hume kamjor samajhati hai.mai Fateh singh kharwar ballia ka hun.

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